प्रकृति में मूल बल (Fundamental forces in nature)

प्रकृति में चार प्रकार के मूल बल माने जाते है:

  • गुरुत्वाकर्षण बल
  • विद्युत चुम्बकीय बल
  • प्रबल नाभिकीय बल
  • दुर्बल नाभिकीय बल।

गुरुत्वाकर्षण बल

किन्हीं दो पिंडों के मध्य उनके द्रव्यमानों के कारण लगने वाले आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते है। जैसे-जैसे दो पिंडो के मध्य दूरी बढ़ती है उनके मध्य लगने वाले आकर्षण बल का मान कम होता जाता है अर्थात ये व्युत्क्रम वर्ग नियम का पालन करते है। दो पिंडो के मध्य लगने वाला गुरुत्व बल किसी अन्य पिंड की उपस्थित से प्रभावित नहीं होता है अर्थात गुरुत्वाकर्षण बल माध्यम पर निर्भर नहीं करता है। यह एक सार्वत्रिक बल है।

इस ब्रह्मांड में प्रत्येक पिंड अन्य पिंड के कारण गुरुत्वाकर्षण बल का अनुभव करता है। उदाहरण के लिये, इस पृथ्वी पर रखी प्रत्येक वस्तु पृथ्वी के गुरुत्व बल का अनुभव करती है। पृथ्वी के परित: चन्द्रमा तथा मानव निर्मित उपग्रहों की गति, सूर्य के परित: पृथ्वी तथा ग्रहों की गति और पृथ्वी पर गिरते पिंडो की गति गुरुत्व बल द्वारा ही नियंत्रित होती है। ब्रह्मांड की वृहत् स्तर की परिघटनाओं जैसे तारो, मंदाकिनियों तथा मंदाकिनी गुच्छों के बनने तथा विकसित होने में गुरुत्वाकर्षण बल की प्रमुख भूमिका होती है। गुरुत्वीय बल एक दुर्बल बल है जिसकी परास अनंत होती है। गुरुत्व बल का क्षेत्र कण ग्रेविटोन कहलाता है।

विद्युत चुंबकीय बल

आवेशित कणों के मध्य लगने वाले बल को विद्युत चुम्बकीय बल कहते है। यदि दो कण स्थिर है तो इनके मध्य लगने वाला बल व्युत्क्रम वर्ग नियम का पालन करता है तथा इस बल को कूलॅाम-नियम द्वारा व्यक्त किया जाता है। दो सजातीय आवेशित कणों (दो धनावेशित अथवा दो ऋणावेशित कणों) के मध्य लगने वाला विद्युत चुम्बकीय बल प्रतिकर्षण प्रकृति का होता है तथा दो विजातीय आवेशित कणों (धनावेशित तथा ऋणावेशित) कणों के मध्य लगने वाला विद्युत चुम्बकीय बल आकर्षण प्रकृति का होता है। अत: विद्युत चुम्बकीय बल आकर्षी अथवा प्रतिकर्षी प्रकृति का हो सकता है।

इन बलों की परास दीर्घ होती है। ये गुरुत्वाकर्षण बल की अपेक्षा कहीं अधिक प्रबल होते है। ये संरक्षी बल है तथा इनका मान आवेशों के मध्य उपस्थित माध्यम की प्रकृति पर भी निर्भर करता है। विद्युत चुम्बकीय बल का क्षेत्र कण फोटोन है। ये बल परमाणु में इलेक्ट्रॅानों की गति को नियंत्रित करता है। द्रव्य अधिकांशतः वैद्युत उदासीन होता है। अत: द्रव्य में विद्युत चुम्बकीय बल अधिकांश रुप से शून्य होता है तथा पार्थिव परिघटनाओं में गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभुत्व रहता है।

प्रबल नाभिकीय बल

नाभिक में प्रोटॅान और न्युट्रॅान होते है। न्युट्रॅान अनावेशित कण जबकि प्रोटॅान धनावेशित कण है। विद्युत चुम्बकीय बल के अनुसार सजातीय कण प्रतिकर्षित होते है। अत: नाभिक में स्थित प्रोटॅानों को आपस में प्रतिकर्षित होना चाहिए तथा नाभिक को असंतुलित होकर बिखर जाना चाहिए। लेकिन वास्तव में नाभिक में प्रोटॅान और न्युट्रॅान बहुत पास-पास होते है। इससे स्पष्ट होता है की नाभिक में प्रोटॅानों के मध्य लगने वाले प्रतिकर्षण बल से अधिक एक अन्य शक्तिशाली प्रकृति का आकर्षण बल लगता है जो प्रोटॅानों एंव न्यूट्रॅानों दोनो को नाभिक के सूक्ष्म आयतन में बाँधे रखता है। नाभिक के भीतर लगने वाले इस शक्तिशाली आकर्षण बल को नाभिकीय बल या प्रबल नाभिकीय बल कहते है। ये नाभिक में प्रोटॅान- प्रोटॅान, न्युट्रॅान- न्युट्रॅान तथा प्रोटॅान -न्युट्रॅान के मध्य लगते है। यह सभी प्रकार के बलों में से सबसे प्रबल है। यह विद्युत चुम्बकीय बल का 100 गुना है। यह आवेश के प्रकार पर निर्भर नहीं करता है तथा प्रोटॅान- प्रोटॅान न्युट्रॅान- न्युट्रॅान तथा प्रोटॅान -न्युट्रॅान के मध्य समान रुप से कार्य करता है। यह किसी नाभिक के स्थायित्व के लिये उतरदायी माना जाता है। दो न्यूक्लिआन के मध्य पाई मेसोन के विनिमय से ये बल उत्पन्न होते है।

दुर्बल नाभिकीय बल

दुर्बल नाभिकीय बल रेडियोऐक्टिव नाभिक के बीटा क्षय में प्रकट होते है। रेडियोऐक्टिव नाभिक के बीटा क्षय की प्रक्रिया में जब न्युट्रॅान, प्रोटॅान में अथवा प्रोटॅान, न्युट्रॅान में रूपांतरित होता है तब दुर्बल बल उत्पन्न होते है। ये बल विद्युत चुम्बकीय बल तथा प्रबल नाभिकीय बल से काफी दुर्बल होता है परंतु गुरुत्वाकर्षण बल की तुलना में प्रबल होता है। इस बल का परिसर 10-16 m कोटि का होता है।

Force Symbol Range Strength
Gravity G Infinite Weakest
Weak nuclear force W 10-18 m Stronger than gravity, weaker than electromagnetism
Electromagnetic force F 10-15 m Stronger than weak nuclear force
Strong nuclear force g 10-15 m Strongest
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