विद्युत धारा (Electric current)

किसी चालक में आवेशों के प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते है। जब किसी चालक में समय t में आवेश Q प्रवाहित होते है तो उसमें प्रवाहित धारा को निम्न प्रकार से व्यक्त करते है- $$I = Q/t $$
विद्युत धारा का SI मात्रक ऐम्पियर है। विद्युत धारा एक अदिश राशि है।

धारा घनत्व

किसी चालक के एकांक काट क्षेत्रफल के अभिलंबवत बहने वाली विद्युत धारा को धारा घनत्व कहते है । किसी चालक के काट क्षेत्रफल A के अभिलंबवत बहने वाली विद्युत धारा I को धारा घनत्व J के रुप में निम्न प्रकार से व्यक्त करते है-। $$ J = I/A $$

धारा घनत्व का A/m2 है। धारा घनत्व एक सदिश राशि है।

ओम का नियम

जब किसी चालक में I धारा प्रवाहित होती है तो चालक के सिरों के मध्य उत्पन्न विभवांतर उसमें प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है। अर्थात V α I

$$ V = RI $$

जहां R एक समानुपाती नियतांक है जिसे चालक का प्रतिरोध कहते है।

अपवाह वेग

जब किसी चालक पर बाह्य विद्युत क्षेत्र आरोपित किया जाता है तो चालक में उपस्थित मुक्त इलेक्ट्रॉनों पर विद्युत क्षेत्र की दिशा के विपरीत विद्युत बल लगता है। जिसके कारण ये मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युत क्षेत्र की दिशा के विपरीत गति करने लगते है। इस प्रकार मुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा प्राप्त वेग को अपवाह वेग कहते है।
किसी चालक पर विद्युत क्षेत्र (E) आरोपित किया
जाता है तो इलेक्ट्रॉन द्वारा प्राप्त अपवाह वेग \(\vec{v_d}\)
को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जाता है,
$$\vec{v_d} = \frac{-e\vec{E}\tau}{m}$$
जहाँ
-e = इलेक्ट्रॉन का आवेश
m = इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान
\(\tau\) = विश्रांति काल

विद्युत गतिशीलता

प्रति एकांक विद्युत क्षेत्र के अपवाह वेग के परिमाणको विद्युत गतिशीलता कहते हैं। विद्युत गतिशीलता को संकेताक्षर \(\mu\) से प्रदर्शित किया जाता है।अतः$$\mu= \frac{|\vec{v_d}|}{E}$$जहाँ \(\vec{v_d}\) अपवाह वेग तथा (E) विद्युत क्षेत्र है।गतिशीलता का SI मात्रक m2Vs-1 है और इसके प्रायोगिक मात्रक cm2Vs-1 है। अपवाह वेग \(v_d = \frac{eE\tau}{m}\) का उपयोग करने पर विद्युत गतिशीलता निम्नवत प्राप्त होती है,$$\mu = \frac{e\tau}{m}$$जहाँ \(\tau\) इलेक्ट्रॉन के लिए संघट्टन का औसत समय है। विद्युत गतिशीलता का मान पदार्थ की प्रकृति एवं ताप पर निर्भर करता है। विद्युत गतिशीलता धनात्मक होती है।

विद्युत मोटर

विद्युत मोटर (electric motor) एक विद्युतयांत्रिक मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती है; अर्थात इसे उपयुक्त विद्युत स्रोत से जोड़ने पर यह घूमने लगती है जिससे इससे जुड़ी मशीन या यन्त्र भी घूमने लगती है।

एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों, रेफ्रिजरेटरों, विद्युत मिश्रकों, वाशिंग मशीनों, कंप्यूटरों, MP 3 प्लेयरों आदि में किया जाता है।

विद्युत स्विच

विद्युत स्विच एक युक्ति होती है जो किसी विद्युत परिपथ में बिजली धारा के प्रवाह को आरंभ करती है या रोकती है। स्विच में चालू (ऑन) तथा बंद (ऑफ) की दो स्थितियां होती हैं। चालू (ऑन) की स्थिति में परिपथ में विद्युत धारा का प्रवाह होता है जबकि ऑफ स्थिति में विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता है।

विद्युत परिपथ

विद्युत परिपथ एक सेल (अथवा एक बैटरी), एक प्लग कुंजी, एक वैद्युत अवयव (अथवा अवयवों) तथा संयोजी तारों से मिलकर बनता है। विद्युत परिपथों का प्रायः ऐसा व्यवस्था आरेख खींचना एक सेल सुविधाजनक होता है जिसमें परिपथ के विभिन्न अवयवों को सुविधाजनक प्रतीकों द्वारा निरूपित किया जाता है। सारणी 1 में सामान्य उपयोग में आने वाले कुछ वैद्युत अवयवों को निरूपित करने वाले रूढ़ प्रतीक दिए गए हैं।

सारणी 1 : विद्युत परिपथों में सामान्यतः उपयोग होने वाले कुछ अवयवों के प्र

अवयवप्रतीक
प्रतिरोध
वैद्युत अवयवों के प्रतीक

विद्युत सेल के टर्मिनलों को तार द्वारा बल्ब के टर्मिनलों से जोड़ने पर एक सरल विद्युत परिपथ प्राप्त होता है। विद्युत परिपथ, विद्युत सेल के दो टर्मिनलों के मध्य विद्युत प्रवाह को दर्शाता है। बल्ब केवल तभी जलता है जब परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित होती है।

विद्युत धारा का प्रवाह सेल के धन सिरे से ऋण सिरे की ओर होता है। कई बार परिपथ पूरा होने पर भी बल्ब नहीं जलता है। इसका क्या कारण है कि जब परिपथ संयोजन पूर्ण नहीं है या तार सही जुड़ा हुआ नहीं है अथवा बल्ब भी खराब हो। इसे हम बल्ब का फ्यूज होना भी कहते हैं।

किरचॉफ का नियम

जटिल विद्युत परिपथ के विश्लेषण के लिए किरचॉफ ने दो नियम प्रतिपादित किए, जो कि निम्नवत् –

किरचॉफ का प्रथम नियम या संधि नियम (Kirchhoff’s first law)

इस नियम के अनुसार किसी संधि पर संधि से प्रवेश करने वाली विद्युत धाराओं का योग इस संधि से निकलने वाली धाराओं के योग के बराबर होता है ।अन्य शब्दों में किसी संधि पर मिलने वाली धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है। अर्थात् Σ I = 0 किरचॉफ का प्रथम नियम आवेश के संरक्षण सिद्धान्त पर आधारित है।

किरचॉफ का द्वितीय नियम या पाश (लूप) नियम (Kirchhoff’s second law)

प्रतिरोधकों तथा सेलों से सम्मिलित किसी बंद लूप के चारों ओर विभव में परिवर्तनों का बीजगणितीय योग शून्य होता है। अर्थात् Σ IR = 0 यह नियम स्थिर विद्युत बल की संरक्षी प्रकृति पर आधारित है।

विद्युत बल्ब

विद्युत बल्ब में काँच के आवरण के अन्दर एक पतला तार होता है, जिसे फिलामेन्ट कहते हैं। यह फिलामेन्ट दो मोटे तारों के मध्य लगा होता है। बल्ब के आधार पर धातु की नोक होती है तथा आधार के ऊपर धात्विक ढाँचा होता है। ये बल्ब के दो टर्मिनल होते हैं जो मोटे तारों से जुड़े होते हैं।

Scroll to Top