रक्त एक तरल जीवित ऊतक है जो गाढ़ा, चिपचिपा व लाल रंग का होता है तथा रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होता रहता है। यह प्लाज्मा (निर्जीव तरल माध्यम) तथा रक्त कणिकाओं (जीवित कोशिकाओं) से मिलकर बना है। प्लाज्मा आंतों से अशोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाने तथा विभिन्न अंगों से हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगों तक लाने का कार्य करता है। स्वस्थ व्यक्ति में सामान्यत: 5-6 लीटर रक्त होता है। महिलाओं में पुरुषों की तुलना में लगभग 1 लीटर रक्त कम होता है। (RBC कम होती है।) मानव रक्त का pH लगभग 7.4 (हल्का क्षारीय) होता है।
प्लाज्मा में तीन प्रकार की रक्त कणिकाएं मिलती है।
- लाल रक्त कणिकाएँ (Red blood corpuscles) – गैसों का परिवहन तथा विनिमय करती है।
- श्वेत रक्त कणिकाएँ (White blood corpuscles) – शरीर की रोगाणुओं आदि से रक्षा करती है।
- बिंबाणु (Platelets) – रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा रक्त स्त्राव रोकने में मदद करती है।
रक्त समूह (Blood groups)
सर्वप्रथम वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टीनर ने 1901 में रक्त का विभिन्न समूहों में वर्गीकरण किया। रक्त की लाल रक्त कणिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले विभिन्न प्रतिजनों की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के आधार पर वर्गीकृत कर विभिन्न समूहों में बांटा गया है।
रक्त समूह की खोज किसने की थी?
रक्त समूह खोजकर्ता कार्ल लैंडस्टीनर है। ABO रक्त समूहों की खोज 1901 में कार्ल लैंडस्टीनर ने की थी।
रक्त समूह के प्रकार
मानवों में दो प्रकार के रुधिर वर्ग पाए जाते हैं।
(i) ABO रुधिर समूह
(ii) AB- रुधिर समूह
– सर्वप्रथम कार्ल लैण्डस्टीनर ने रक्त समूह के बारे में बताया तथा उन्होंने ही A, B तथा O रक्त समूह की खोज की।
– AB रक्त समूह के बारे में डी कॉस्टेलो एवं स्टर्ली ने बताया था।
– ABO रुधिर वर्ग प्रतिजन A या प्रतिजन B की लाल रुधिर कणिकाओं की उपस्थिति के आधार पर होता है।
रक्त समूह सारणी
रक्त समूह, उपस्थित एंटीजन एवं एंडीबॉडी | ||
रक्त समूह | उपस्थितएंटीजन | उपस्थित एंटीबॉडी |
A | A | b |
B | B | a |
AB | AB | एंडीबॉडी अनुपस्थित |
O | RBC पर एंटीजनअनुपस्थित | प्लाज्मा में a व b दोनोंएंटीबॉडीज पाई जाती है। |
Rh कारक (Rh-Factor):–
Rh-एंटीजन की खोज कार्ल लैण्ड स्टीनर तथा वीनर नेमकाका रीसस प्रजाति के बंदर में की थी तथा इसे Rh कारक कहा, जिसमें Rh-एंटीजन उपस्थित हो, उसे Rh+ तथा Rh एंटीजन अनुपस्थित हो, तो इसे Rh– कहते हैं।
– ORh+ रुधिर वर्ग के लोग सार्वत्रिक दाता तथा ABRh+वाले सार्वत्रिक ग्राही होते हैं।
– RH+ रुधिर, Rh– रुधिर वाले व्यक्ति को नहीं दिया जासकता है, परंतु Rh– रुधिर वाले व्यक्ति को दिया जा सकता है। अत: ORh+ रुधिर ABRh– को नहीं दिया जा सकता।