बल (Force)

किसी पिंड की स्थिति में परिवर्तन के लिये प्रयास के रुप में धक्का देना या खींचना बल (Force) कहलाता है। किसी पिंड पर बल लगाने के लिए उसके सम्पर्क में आना आवश्यक नहीं है। बल लगाने के लिए दो पिंडों में परस्पर अन्तःक्रिया होना आवश्यक है। बल एक सदिश राशि है जिसे सामान्यतः प्रतीक \(\vec{F}\) से प्रदर्शित किया जाता है। बल का SI मात्रक न्यूटन है जिसे प्रतीक N से प्रदर्शित किया जाता है।
न्यूटन के गति के द्वितीय नियम के अनुसार
F = k dpdt
यदि k = 1 ले तो
F = ma
अर्थात किसी पिंड पर आरोपित बल उसमें उत्पन्न त्वरण व उसके द्रव्यमान के गुणनफल के बराबर होता है।

संवेग

यदि द्रव्यमान m का पिंड वेग v से गतिशील है तो इसके संवेग (momentum) p निम्नलिखित सूत्र से दिया जाता है,

p = mv

संवेग एक सदिश राशि है। संवेग का मात्रक किग्रा-मीटर/सेकण्ड या न्यटन/सेकण्ड है |

किसी पिंड पर लगने वाला बल संवेग (momentum) परिवर्तन तथा इसमें लगने वाले समय पर निर्भर करता है। संवेग परिवर्तन में लगने वाले समय को बढ़ाकर हम लगने वाले बल को कम कर सकते है।

आवेग

बल तथा समय के गुणनफल को आवेग (Impulse)कहते हैं। आवेग का सूत्र है,

आवेग = औसत बल × समय

I = Fav × t = p2p1

बल कई प्रकार के हो सकते है- जैसे श्यान बल, घर्षण बल, गुरुत्वीय बल, विद्युत चुंबकीय बल, दुर्बल नाभिकीय बल, प्रबल नाभिकीय बल, संपर्क बल इत्यादि।

बल की अवधारणा

  • बल पिंड की स्थिति में परिवर्तन कर सकता है अर्थात बल लगाने पर स्थिर पिंड गतिशील हो जाता है।
  • गतिशील पिंड पर गति की दिशा में बल लगाने पर उसकी गति में वृद्धि हो जाती है तथा गति के विपरीत दिशा में बल लगाने पर उसकी गति में कमी हो जाती है।
  • किसी पिंड पर परस्पर विपरीत दिशा में दो बल कार्यरत होने पर पिंड अधिक मान के बल की दिशा में गतिशील होगा। यदि दोनों बल समान परिमाण के हो तो पिंड स्थिर रहेगा। यह बलों की संतुलन की स्थिति कहलाती है।
  • बल द्वार गतिशील पिंडों की गति की दिशा में परिवर्तन किया जा सकता है।
  • बल लगाने पर वस्तु के आकार या आकृति में परिवर्तन हो सकता है।
  • बल लगाने पर पिंड में त्वरण या मंदन होता है।
  • बल लगाने के लिए पिंड को छूना आवश्यक नहीं है।

बल का मात्रक

बल का एस. आई. (S.I.) मात्रक न्यूटन (Newton) है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइजेक न्यूटन ने बल का अध्ययन किया। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण बल एवं गति के
नियम दिए थे। न्यूटन के नाम पर ही बल के मात्रक का नाम न्यूटन रखा गया। बल की C.G.S. पद्धति में मात्रक डाइन है

डाइन एवं न्यूटन में संबंध

हम जानते है कि,
F = ma
अतः, 1N = 1 kg × 1m s-2
या, 1N = 103g × 102cm s-2
या, 1N = 105 g cm s-2
या, 1N = 105 dyne
अतः 1N, 105 dyne के बराबर होता है।

मूल मात्रकों के पदों में 1N का मान

हम जानते है कि,
F = ma
इसलिए, 1N = 1 kg × 1m s-2
या 1N = 1 kg m s-2
अतः मूल मात्रकों के पदों में 1N का मान 1 kg m s-2 होता है।

CGS मात्रकों के पदों में डाईन

हम जानते है कि,
F = ma
इसलिए, 1dyne = 1 g × 1cm s-2
या, 1dyne = 1 g cm s-2
अतः CGS मात्रकों के पदों में 1dyne का मान 1 g cm s-2 होता है।

बलों के प्रकार

मूल बल

प्रकृति में मूल बल चार प्रकार के होते हैं, गुरुत्वीय बल, विद्युत चुंबकीय बल, दुर्बल नाभिकीय बल तथा प्रबल नाभिकीय बल।

गुरुत्वीय बल

पृथ्वी जिस बल से पिंडों को अपनी ओर आकर्षित करती है उसे गुरुत्वीय बल कहते हैं।

विद्युत चुंबकीय बल

आवेशित कणों के मध्य लगने वाले बल को विद्युत चुम्बकीय बल कहते है।

दुर्बल नाभिकीय बल

रेडियोऐक्टिव नाभिक के बीटा क्षय की प्रक्रिया में जब न्युट्रॅान, प्रोटॅान में अथवा प्रोटॅान, न्युट्रॅान में रूपांतरित होता है तब दुर्बल बल उत्पन्न होते है।

प्रबल नाभिकीय बल

नाभिक के भीतर लगने वाले इस शक्तिशाली आकर्षण बल को नाभिकीय बल या प्रबल नाभिकीय बल कहते है। ये नाभिक में प्रोटॅान- प्रोटॅान, न्युट्रॅान- न्युट्रॅान तथा प्रोटॅान -न्युट्रॅान के मध्य लगते है।

अनुभव के आधार पर बलों के प्रकार

अनुभव के आधार पर बलों को दो भागों में बांटा जा सकता है। यथा- संपर्क बल तथा असंपर्क बल।

संपर्क बल

श्यान बल, वायु-प्रतिरोध आदि संपर्क बलों के उदाहर‌ण हैं।

असंपर्क बल

गुरुत्वाकर्षण बल, विद्युत चुंबकीय बल, चुंबकीय बल आदि असंपर्क बल के उदाहरण हैं।

बलों के अन्य प्रकार

केंद्रीय बल

किसी पिंड पर कार्यरत ऐसा बल जिसका परिमाण केवल स्थिर बिंदु से पिंड की दूरी पर निर्भर करता है तथा जिसकी क्रिया रेखा सदैव उस स्थिर बिंदु से गुजरती हो, केंद्रीय बल कहलाता है। केंद्रीय बल संरक्षी बल होते हैं। गुरुत्वीय बल, स्थिर वैद्युत बल, अभिकेंद्रीय बल इत्यादि केंद्रीय बल के उदाहरण है।

पेशीय बल

किसी व्यक्ति को भारी बक्सा उठाने के लिए बल लगाना पड़ता है। यह बल उसकी मांसपेशियां लगाती है। इसलिए इसे पेशीय बल कहते हैं।

चुंबकीय बल

चुंबक के कारण चुंबकीय पदार्थों पर लगने वाले बल को चुंबकीय बल कहते हैं।

अभिलंब बल

अभिलंब बंल निकटस्थ परमाणुओं के प्रतिक्षेप से उत्पन्न होता है।

कमानी बल

कमानी बल कमानी (spring) के संपीड़न और विस्तारण का विरोध करता है। यह बल सिर्फ कमानी के विस्थापन पर निर्भर है।

घर्षण बल

घर्षण अभिलंब बल से संबंधित है यह गति का विरोध करता है। घर्षण बल के दो प्रकार हैं, स्थैतिक घर्षण एवं गतिज घर्षण।

स्थैतिक घर्षण दो पिंडों के संपर्क पृष्ठ की समांतर दिशा में है, लेकिन गतिज घर्षण गति की दिशा पर निर्भर नहीं है।

संरक्षी बल

पिंड पर आरोपित बल (force) संरक्षी होगा। यदि-

  • बल (Force) द्वारा किया गया कार्य (work) केवल पथ पर निर्भर करे।
  • nnnn
  • बल द्वारा बंद पथ में किया गया work शून्य हो।
  • nnnn
  • बल इस प्रकार कार्यरत हो कि पिंड को अपनी आरंभिक अवस्था में लौटने पर वही गतिज ऊर्जा ( kinetic energy) प्राप्त हो जो आरंभ में थी अर्थात सम्पूर्ण चक्रीय प्रक्रम में गतिज ( kinetic energy) नियत हो।

असंरक्षी बल

किसी पिंड पर आरोपित बल (force) असंरक्षी होगा। यदि-

  • बल (Force) द्वारा किया गया कार्य (work) पथ पर निर्भर नहीं करता है।
  • बल द्वारा बंद पथ में किया गया कार्य अशून्य हो
  • बल इस प्रकार कार्यरत हो कि पिंड को अपनी आरंभिक अवस्था में लौटने पर गतिज ऊर्जा (kinetic energy) आरंभ के सापेक्ष परिवर्तित हो जाती है अर्थात सम्पूर्ण चक्रीय प्रक्रम में गतिज ऊर्जा (kinetic energy) नियत नहीं रहती हो।

ससंजक बल

प्रत्येक पदार्थ छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना है जिन्हें अणु कहते हैं। पदार्थ में अणु एक-दूसरे को आकर्षित करके बांधे रहते हैं।

एक ही पदार्थ के अणुओं के बीच जो आकर्षण बल कार्य करता है उसे ससंजक बल कहते हैं।

वह अधिकतम दूरी जिसपर दो अणु एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं, आणविक परास कहलाता है। यह लगभग 10e-19 मीटर की कोटि का होता है।

आसंजक बल

भिन्न-भिन्न पदार्थ के अणुओं के बीच जो आकर्षण बल कार्य करता है उसे आसंजक बल कहते हैं।

जल कांच के पृष्ठ को भिगोता है परन्तु पारा नहीं क्योकि जल व काँच के अणुओं के बीच लगने वाला आसंजक बल, जल के अणुओं के बीच ससंजक बल से अधिक होता है। जबकि पारा और कांच के अणुओं के बीच लगने वाला आसंजक बल, पारा के अणुओं के बीच लगने वाले ससंजक बल से कम होता है।

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