हमारे चारों ओर के परिवेश को देखने पर हम पातें हैं कि पदार्थ की तीन अवस्थाएँ होती है-ठोस, द्रव एवं गैस। पदार्थ की अवस्थाएँ पदार्थ में परमाणुओं के बन्ध तथा उनकी संरचना पर निर्भर करता है। ऊर्जा के आदान-प्रदान से ये अवस्थाएँ अपनी एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित होती है ।
उदाहरण के लिए जब हम बर्फ को गर्म करतें है तो यह द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। इसे और अधिक गर्म करने पर यह द्रव से वाष्प अवस्था में परिवर्तित हो जाता है| इस प्रकार हम पाते है कि किसी पदार्थ को ऊर्जा देने पर वह ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में तथा द्रव अवस्था से गैसीय अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। जब हम गैसीय पदार्थ को गैसीय अवस्था में और अधिक ऊर्जा देते है तो वह इसके परमाणु से घटक कणों इलेक्ट्रोनों तथा प्रोटॅान उत्सर्जित होते है। जिससे पदार्थ आयनीकृत हो जाता है। इस प्रकार हमें परमाणुओं, इलेक्ट्रोनो, प्रोटॅानों तथा आवेशित कणों की एक गैस मिलती है इसे हम पदार्थ की चतुर्थ अवस्था कहते है जिसे हम प्लाज्मा भी कहते है। यह आयनीकरण की प्रक्रिया अति उच्च ताप तथा दाब पर सम्पन्न होती है। प्लाज्मा प्राकृतिक रूप से आकाशीय पिण्डों जैसे गर्म तारों के वायुमंडल तथा पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में पाया जाता है। सूर्य से उत्सर्जित सौर पवनें जो कि आवेशित कणों से बनी है उनमे से कुछ आवेशित कण पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में आ जाते है, वायुमंडल के इस भाग को आयनमंडल कहते है।पृथ्वी सतह पर प्लाज्मा नहीं पाया जाता है,क्योंकि पृथ्वी सतह पर उच्च घनत्व तथा कम तापमान पाया जाता है।सूर्य भी एक प्लाज्मा का उदाहरण है,जिसके भीतर का ताप बहुत उच्च (107 K) होता |