पृष्ठ तनाव (Surface tension)

किसी द्रव के पृष्ठ पर खींची गई काल्पनिक रेखा की एकांक लम्बाई के लम्बवत कार्य करने वाले बल को ही द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं।

द्रव का वह गुण जिसके कारण वह अपने स्वतंत्र पृष्ठ के क्षेत्रफल को न्यूनतम करने की कोशिश करता है। पृष्ठ तनाव कहलाता है।

पृष्ठ तनाव को ‘T’ से प्रदर्शित करते हैं।

पृष्ठ तनाव = बल / लम्बाई

पृष्ठ तनाव का मात्रक न्यूटन/मीटर तथा विमीय सूत्र [M1T-2 ] है। पृष्ठ तनाव का अन्य मात्रक  है।

पृष्ठ तनाव को प्रभावित करने वाले कारक

  • किसी द्रव के लिए पृष्ठ तनाव का मान द्रव की प्रकृति, द्रव के ताप तथा उस माध्यम पर निर्भर करता है जो द्रव के पृष्ठ के दूसरी ओर होता है।
  • द्रव का ताप बढ़ने पर पृष्ठ तनाव घटता है।
  • क्रांतिक ताप पर पृष्ठ तनाव शून्य होता है।
  • यदि विलेय बहुत घुलनशील है तो द्रव का पृष्ठ तनाव बढ़ जाता है। जैसे ; जल में नमक डालने पर जल का पृष्ठ तनाव बढ़ जाता है।
  • यदि विलेय काम घुलनशील है तो पृष्ठ तनाव बढ़ जाता है। जैसे ; जल में साबुन या फिनॉल डालने पर जल का पृष्ठ तनाव घट जाता है।
  • यदि जल की सतह पर कोई चिकनाई, धूल हो तो इससे जल का पृष्ठ तनाव घट जाता है। 

पृष्ठ तनाव के प्रमाण के सम्बन्ध में कुछ उदाहरण

(1) काँच के सिरों का बर्नर की ज्वाला में गर्म होने पर गोल हो जाना

जब काँच को गर्म करते हैं तो वह पिघल कर द्रव बन जाता है। इस द्रव का पृष्ठ कम से कम क्षेत्रफल घेरने का प्रयास करता है। अतः पृष्ठ तनाव के कारण पिघला हुआ कांच गोले का रूप ले लेता है।

(2) पारे की छोटी बूंदें गोल तथा बड़ी बूंदें चपटी होती हैं

जब काँच की प्लेट पर किसी द्रव की बूँद डाली जाती है तो बूंद की आकृति पृष्ठ तनाव तथा गुरुत्व बल पर निर्भर करती है।

यदि बूँद के ऊपर केवल पृष्ठ तनाव लगा है तो उसकी स्थितिज ऊर्जा कम से कम होगी जिससे उसका क्षेत्रफल कम से कम होगा तथा बूंद की आकृति गोलाकार हो जाएगी।

यदि बूँद पर केवल गुरुत्व बल कार्य कर रहा हो तो बूँद की आकृति चपटी हो जाएगी।

(3) सीसे के छर्रे बनाना

पिघले हुए सीसे को किसी ऊंचाई से फुहार के रूप में जल में गिराया जाता है। गिरते समय पिघला हुआ सीसा पृष्ठ तनाव के कारण न्यूनतम पृष्ठ क्षेत्रफल घेरते हुए गोलीय आकार धारण कर लेता है तथा जल में ठंडा होकर ठोस हो जाता है।

(4) फ़ुहारने से ठंडक उत्पन्न होती है

जब हम किसी द्रव को फुहरते हैं तो द्रव की असंख्य छोटी-छोटी बूंदें बनने के कारण द्रव का पृष्ठीय क्षेत्रफल बढ़ जाता है। इस प्रक्रिया में द्रव के भीतर के अणु ऊपर उठकर बूंदों के पृष्ठ पर पहुंचते हैं।

इसके लिए उन्हें ससंजक बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। जिससे उनके आंतरिक ऊर्जा में कमी हो जाती है, फलस्वरूप बूंदो का ताप गिर जाता है।

(5) सुई का जल पर तैरना

यदि हम एक बारीक सुई को स्याही सोखते पर रखकर धीरे से जल के पृष्ठ पर छोड़ दे तो कुछ देर में सोखता तो जल में डूब जाता है लेकिन सुई तैरती रहती है। इसका कारण जल का पृष्ठ तनाव है।

(6) जल के पृष्ठ पर कपूर के टुकड़ों का नाचना

जब कपूर के छोटे-छोटे टुकड़े जल में स्वच्छ पृष्ठ पर डाले जाते है तो वे जल में घुलने का प्रयास करते हैं। घोल का पृष्ठ तनाव शुद्ध जल की तुलना में कम होता है। चूँकि टुकड़ों की आकृति अनियमित होती है अतः कपूर का एक भाग दूसरे की अपेक्षा अधिक घुल जाता है। एक ओर का पृष्ठ तनाव दूसरे की अपेक्षा कम हो जाता है। अतः कपूर के टुकड़े अधिक पृष्ठ तनाव वाले क्षेत्र की ओर खींच जाते हैं। अतः ये जल के पृष्ठ पर नाचते रहते हैं।

पृष्ठ तनाव तथा पृष्ठ ऊर्जा में सम्बन्ध

किसी द्रव के पृष्ठ के क्षेत्रफल में वृद्धि के लिए जो कार्य किया जाता है वह उस पृष्ठ की ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। इस ऊर्जा को पृष्ठ ऊर्जा कहते हैं।

इसे ‘SE’ या W से प्रदर्शित करते हैं।

पृष्ठ ऊर्जा = पृष्ठ तनाव x पृष्ठ क्षेत्रफल में वृद्धि

$$dW = – T \cdot dA$$

जहां – 

  • W = द्रव की पृष्ठ ऊर्जा अथवा द्रव के पृष्ठ क्षेत्रफल को बढ़ाने में किया गया कार्य
  • T = द्रव का पृष्ठ तनाव
  • A = द्रव के पृष्ठ क्षेत्रफल में वृद्धि

केशिकात्व

जिस नली का छिद्र बहुत बारीक (केश अथवा बाल के समान) होता है, उसे केश नली कहते हैं। केश नली में द्रव के ऊपर चढ़ने अथवा नीचे उतरने की घटना को केशिकात्व कहते हैं।

केश नली जितनी बारीक होगी जल उतना ही ऊंचा चढ़ेगा। जो द्रव कांच को भिगोते हैं वे कांच की बनी केशनली में ऊपर की ओर चढ़ते हैं। जो द्रव कांच को नहीं भिगोते वे कांच की बनी केशनली में नीचे की ओर उतरते हैं।

केशिकात्व का कारण

केशिकात्व अथवा द्रव के केशनली में ऊपर चढ़ने अथवा नीचे उतरने का कारण द्रव का पृष्ठ तनाव है।

उदाहरण के लिए कांच की केशनली को पानी में सीधा डुबोया जाए तब पानी केशनली में ऊपर चढ़ जाता है। जबकि कांच की केशनली को पारे में सीधा डुबोने पर पारे का तल केशनली में नीचे उतर जाता है।

केशनली में द्रव के चढ़ने अथवा उतरने की ऊंचाई ज्ञात करने का सूत्र

$$h = \frac{2 T \cos \theta}{r \rho g}$$

जहां –

  • h = केशनली में चढ़े अथवा उतरे द्रव की ऊंचाई
  • T = द्रव का पृष्ठ तनाव
  • r = नली की त्रिज्या
  • ρ = द्रव का घनत्व
  • θ = स्पर्श कोण

सूत्र से यह पता चलता है चढ़े अथवा उतरे द्रव की ऊंचाई केशनली की त्रिज्या r के व्युत्क्रमानुपाती है। यही कारण है कि केशनली जितनी बारीक होगी जल उतना ही ऊपर चढ़ेगा।

केशिकात्व के उदाहरण

  • खेतों में दिया गया जल पौधों व पेड़ों के तनों में बनी असंख्य केशनलियों में चढ़कर पौधों व पेड़ों की टहनियों तक पहुँचता है।
  • लालटेन में मिट्टी का तेल धागों के बीच बनी केशनलियों के द्वारा ही ऊपर चढ़ता है।
  • यदि जल से भरी बाल्टी में तौलिये का एक सिरा दाल दें तो जल तौलिये के धागों के बीच बनी असंख्य केशनलियों में चढ़ने लगता है तथा धीरे-धीरे पूरा तौलिया भीग जाता है।
  • किसान वर्षा होने पर खेत को जोत देते हैं जिससे मिट्टी में बनी केशनलियाँ टूट जाए और नीचे नमी बनी रहे।
  • स्याही सोखते का कार्य भी केशिकात्व पर आधारित है।
  • लिखने की निब की नोक बीच में चिरी होती है जिससे इसमें बारीक केशनली बन जाती है।
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