पादप

पादप जैविक पदार्थों का निर्माण करते है जिनका उपभोग पादप स्वयं करते है। इसके अलावा मानव सहित अन्य जंतु तथा सूक्ष्मजीव प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से इन्हीं पादपों पर निर्भर करते है। पादप पर्यावरण के विभिन्न संघटकों में जैविक पदार्थों तथा पोषक तत्वों के गमन को संभव बनाते है। हरे पादप अपना आहार स्वयं तैयार करते है। अतः वे स्वपोषित कहलाते है।

वृक्ष

कठोर तना एवं छाल युक्त ऐसे पौधे जिनकी लंबाई अधिक हो वृक्ष कहलाते है। इनके तने से कई शाखाएं ऊपरी हिस्सों से निकलती है। आम, नीम, बरगद, पीपल, खेजड़ी, बबूल, कीकर, रोहिड़ा आदि वृक्षों के उदाहरण है।

क्षुप

क्षुप या झाड़ी ऐसे काष्ठीय पादप है जिनकी ऊंचाई लगभग 6 मीटर से कम होती है। इनके तने का रंग सामान्यतः भूरा होता है। इनमें मुख्य तने के निचले भाग से कई शाखाएं निकलती है। इनका तना प्रायः कठोर होता है। जैस मेहंदी, गुलाब, केर, बेर आदि।

शाक (herbs)

शाक (herbs) कम ऊंचाई के पौधे है। इन पौधों की ऊंचाई बहुत कम (1 मीटर से कम) होती है। इनके तने का रंग भी हरा होता है। यह कम ऊंचाई के अत्यंत कोमल होते है और इन्हें आसानी से मोड़ा जा सकता है। जैसे गेहूॅं, चावल, तुलसी, हल्दी, मिर्च, टमाटर आदि।

एक वर्षीय पादप

ऐसे पादप जिनका जीवन काल एक वर्ष होता है, उन्हें एक वर्षीय पादप कहते हैं। जैसे-मक्का, ज्वार, बाजरा, सरसों आदि।

द्विवर्षीय पादप

ऐसे पादप जिनका जीवन काल सामान्यतया 2 वर्ष का होता है, द्विवर्षीय पादप कहलाते हैं। जैसे-प्याज, पत्ता गोभी, गाजर आदि।

बहुवर्षीय पादप

ऐसे पादप जिनका जीवन काल सामान्यतया 2 वर्ष से अधिक होता है, बहुवर्षीय पादप कहलाते हैं। नीम, चीड़, बरगद आदि बहुवर्षीय पादप है।

स्थलीय पादप

स्थल पर उगने वाले पादप स्थलीय पादप कहलाते है।स्थलीय पादप वे पादप हैं जो भूमि में, भूमि पर, या भूमि से उगते हैं। जैसे नीम, आम, गेहूँ आदि।

स्थलीय पादपों के विकास के लिए, उन्हें निम्नलिखित कारकों की आवश्यकता होती है:

  • प्रकाश: प्रकाश संश्लेषण के लिए प्रकाश आवश्यक है, जो स्थलीय पादपों के लिए ऊर्जा का स्रोत है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड: प्रकाश संश्लेषण के लिए कार्बन डाइऑक्साइड भी आवश्यक है।
  • पानी: प्रकाश संश्लेषण, श्वसन और अन्य महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं के लिए पानी आवश्यक है।
  • खनिज: पोषक तत्वों के रूप में खनिज स्थलीय पादपों के लिए आवश्यक हैं।

स्थलीय पादपों की एक विस्तृत विविधता है, जिनमें शामिल हैं:

  • वृक्ष: पेड़ लंबे, तना वाले पादप हैं जो आमतौर पर लकड़ी से बने होते हैं।
  • झाड़ियाँ: झाड़ियाँ छोटे, तना वाले पादप हैं जो आमतौर पर लकड़ी से बने होते हैं।
  • घास: घास छोटे, तना वाले पादप हैं जो आमतौर पर घास से बने होते हैं।
  • फूल: फूल वाले पौधे फूलों का उत्पादन करते हैं।
  • फर्न: फर्न पत्तेदार पादप हैं जिनके बीज नहीं होते हैं।
  • मॉस: मॉस छोटे, तना वाले पादप हैं जो आमतौर पर फफूंद से बने होते हैं।

आवासों कै आधार पर स्थलीय पादपों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

शीतोद्भिद् पादप

शीत आवास में पाए जाने वाले पौधों को शीतोद्भिद् पादप कहते है। जैसे- साल्मोनेला, लाइकेन, माॅस आदि।इनका जीवन काल अल्प होते है। साल्मोनेला एक पुष्पी पादप है जो बर्फ के नीचे दबा रहता है तथा पुष्पन के समय उत्पन्न ऊष्मा से बर्फ के पिघलने से पादप का केवल पुष्प ही बाहर निकलता है।

लवणमृदोद्भिद पादप

लवण युक्त मृदा या दलदल में पाए जाने वाले पादप लवणमृदोद्भिद् पादप कहलाते है। जैसे- राइजोफोरा, सालसोला।
इन पादपों की जड़े कम गहरी होती है। इसलिए स्तम्भ मूल परिवर्धित होकर दलदल में प्रवेश करके पादप को अतिरिक्त सहारा व स्थिरता प्रदान करती है। इन पादपों के जड़ें श्वसन के लिए ऑक्सीजन सहारा व स्थिरता प्रदान करती है। इन पादपों के जड़ें श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्ति के लिए भूमि से ऊपर आ जाती है तथा ऋणात्मक गुरुत्वानुवर्ती होती है। जड़ों के शीर्ष पर श्वसन के लिए सूक्ष्म रंध्र होते है जिनसे पादपों में ऑक्सीजन की पूर्ति होती है।

इन जड़ों को श्वसन मूलें या न्यूमेटोफोर कहते है। इनके तने क्लोराइड आयनों के संग्रह के लिए गुदेदार होते है। पत्तियां छोटी, मांसल व चमकीली सतह वाली होती है। इन पादपों में बीज का अंकुरण फल के भीतर होता है व बीज से बीजपत्राधार व मूलांकुर बनने के पश्चात् नवोद्भिद उर्ध्वाधर स्थिति में भूमि पर गिर जाता है, जिससे मूलांकुर सीधा कीचड़ में घुस जाता है। इस प्रकार के अंकुरण को सजीव प्रजक या जरायुज अंकुरण कहते है।

समोद्भिद् पादप

सामान्य जल, आर्द्रता व ताप वाले आवास में पाये जाने वाले पादप समोद्भिद् पादप कहलाते है। जैसे- बांस, नीम आदि समोद्भिद् पादपों के उदाहरण है।
इनमें मूलतंत्र सुविकसित व मूलरोम गोप सहित होता है। तना, वायवीय शाखित, मोटा व कठोर होता है। पत्तियाँ चैड़ी व पत्ती की दोनों सतहों पर रन्ध्र पाये जाते है। पादप पूर्ण रूप से विकसित व कार्यिकी प्रणाली समान्य होती है।

मरुद्भिद पादप

मरुद्भिद् पादप शुष्क एवं जलाभाव वाले आवासों में पाए जाते है। जैसे- नागफनी, थोर, कैक्टस, खेजड़ी, केर, आक, ग्वारपाठा आदि।
इन पादपों की जड़ें जल प्राप्ति के लिए अत्यधिक गहरी, सुविकसित होती है। जड़ों में मूल रोम व मूल गोप होते है। इन पादपों का तना काष्ठीय होता है जिस पर बहुकोशिक रोम होते है। कुछ पादपों जैसे आक के तने पर मोम और सिलिका का आवरण होता है। कुछ मरुद्भिद् पादपों का तना हरा होता है जो जल संग्रह व प्रकाश संश्लेषण का कार्य करता है, जैसे- ग्वारापाठा। मरुस्थ्लीय पौधे वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की बहुत कम मात्रा निष्कासित करते हैं।

मरुस्थ्लीय पौधे वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल की बहुत कम मात्रा निष्कासित करते हैं। मरुस्थलीय पौधों में पत्तियां या तो अनुपस्थित होती है या बहुत छोटी होती है। कुछ पौधों में पत्तियां कांटो के रूप में होती है जैसे नागफनी। जिससे वाष्पोत्सर्जन कम होता है। कई पादपों में पत्तियों पर भी मोम की परत पायी जाती है तथा रन्ध्र पत्तियों के नीचे की सतह पर पायी जाती है। गर्ती रन्ध्र पाये जाते है। इनमें फलों व बीजों के चारों ओर कठोर आवरण पाया जाता है। मरुद्भिद पादपों की कोशिकाओं में परासरण सान्द्रता अधिक होती है।

जलोद्भिद् पादप

ऐसे पादप जो जलीय आवासों में रहने के लिये अनुकूलित हो, जलोद्भिद् पादप कहलाते है। जलोद्भिद् पादप में जड़े अल्पविकसित होती है। तने में उत्पलावकता बनाए रखने के लिए वायुकोश पाए जाते है जो इन्हें जल में तैरने में मदद करते है। इन पौधों की पत्तियां कटी फट्टी व रिबन के समान होती है। उदाहरण- वेलिसनेरिया, आइकोर्निया, सेजिटेरिया रेननकुलस, कमल, हाइड्रिला, सिंघाड़ा, जलकुंभी।

स्वपोषी पादप

वे पादप जो सूर्य के प्रकाश से अपना भोजन स्वयं बनाते है, स्वपोषी पादप कहलाते है। स्वपोषी पादपों की पत्तियों में हरे रंग का वर्णक पर्णहरित उपस्थित रहता है। हरे पौधों की पर्णहरित युक्त कोशिकाएं सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड के द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते है। इस क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते है। इस क्रिया के रूप में कार्बोहाइड्रेट बनता है एवं ऑक्सीजन मुक्त होती है। यह कार्बोहाइड्रेट अंत में स्टार्च में रूपांतरित होकर पौधों में संग्रहित रहता है। नीम, बबूल, खेजड़ी, अशोक आदि स्वपोषी पादपों के उदाहरण है।

प्रमुख स्वपोषी पादपों में शामिल हैं:

  • हरित पादप: हरे पादपों में क्लोरोफिल होता है, जो प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक है। वे पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन का प्रमुख स्रोत हैं।
  • शैवाल: शैवाल भी प्रकाश संश्लेषक होते हैं और वे पानी और मिट्टी में पाए जा सकते हैं। वे पशुओं और अन्य जीवों के लिए महत्वपूर्ण भोजन स्रोत हैं।
  • सायनोबैक्टीरिया: सायनोबैक्टीरिया एक प्रकार के जीवाणु हैं जो प्रकाश संश्लेषक भी होते हैं। वे पानी और मिट्टी में पाए जा सकते हैं और वे पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत थे।

परजीवी पादप

वे पादप जो अपना भोजन अन्य पादपों से प्राप्त करते है, परजीवी पादप कहलाते है। परजीवी पादपों में क्लोरोफिल अनुपस्थित होता है। इस कारण ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते है। अमरबेल एक परजीवी पादप है।

परजीवी पादपों को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

  • पूर्ण परजीवी (Absolute parasite): ये पादप अपने मेजबान पादप से अपना संपूर्ण पोषण प्राप्त करते हैं। इनमें प्रकाश संश्लेषण की क्षमता नहीं होती है।
  • आंशिक परजीवी (Semi-parasite): ये पादप अपने मेजबान पादप से कुछ पोषण प्राप्त करते हैं, लेकिन वे अपना कुछ पोषण स्वयं भी संश्लेषित कर सकते हैं।

परजीवी पादपों में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं:

  • हौस्टोरियम (Haustorium): परजीवी पादप अपने मेजबान पादप में प्रवेश करने के लिए एक विशेष अंग का निर्माण करते हैं, जिसे हौस्टोरियम कहा जाता है। हौस्टोरियम के माध्यम से परजीवी पादप अपने मेजबान पादप से पानी, पोषक तत्व और अन्य आवश्यक पदार्थ प्राप्त करते हैं।
  • वर्णक (Pigment): पूर्ण परजीवी पादपों में प्रकाश संश्लेषण की क्षमता नहीं होती है, इसलिए इनमें वर्णक नहीं पाए जाते हैं। आंशिक परजीवी पादपों में वर्णक पाए जाते हैं, लेकिन इनके वर्णक पूर्ण पादपों की तुलना में कम विकसित होते हैं।
  • आकार (Size): परजीवी पादप पूर्ण पादपों की तुलना में छोटे होते हैं।

परजीवी पादपों की कुछ प्रमुख प्रजातियां हैं:

  • अमरबेल (Viscum album): यह एक पूर्ण परजीवी पादप है जो आमतौर पर पेड़ों पर पाया जाता है।
  • रैफलेसिया (Rafflesia arnoldii): यह एक पूर्ण परजीवी पादप है जो दक्षिण-पूर्व एशिया में पाया जाता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा फूल है।
  • कैंकर (Cuscuta campestris): यह एक आंशिक परजीवी पादप है जो आमतौर पर फसलों पर पाया जाता है।

परजीवी पादपों का अध्ययन परजीविता (Parasitism) नामक विज्ञान की शाखा के अंतर्गत किया जाता है।

अमरबेल

अमरबेल एक परजीवी पादप है। इसका पादप एक लता के रूप में होता है। यह प्रायः बबूल, नीम, बेर, साल आदि पर लिपटी रहती है। इसका पादप पीले तंतुओं के रूप में होता है। इसका तना लंबा, पतला शाखायुक्त और चिकना होता है। इसके तने से कई पतली-पतली शाखाएं निकलती है।
इसमें पर्णहरित नहीं पाया जाता है। अतः यह अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकता है। यह अपना भोजन उस वृक्ष से प्राप्त करता है जिस पर यह लिपटा रहता है।

सहजीवी पादप

कुछ पादप एक दूसरे के साथ रहकर भोजन, जल, पोषक तत्व व रहने का स्थान आपस में बांटते है, उन्हें सहजीवी पादप कहते है।
उदाहरण- लाइकेन

मृतजीवी पादप

कुछ पादप मृत एवं सड़े गले पदार्थों से अपना भोजन प्राप्त करते है, उन्हें मृतजीवी पादप कहते है। म्यूकर, एगेरिकस, मोनोट्रोपा, नियोटिया, सारकोड्स आदि मृतजीवी पादप है

इन पादपों में क्लोरोफिल नहीं होता है, इसलिए वे प्रकाश संश्लेषण नहीं कर सकते हैं। मृतजीवी पादपों में कवक, शैवाल, और कुछ प्रकार के पौधे शामिल हैं।

मृतजीवी शैवाल भी आमतौर पर मृत पदार्थों पर पाए जाते हैं। ये शैवाल प्रकाश संश्लेषण कर सकते हैं, लेकिन वे अपने भोजन के लिए मृत पदार्थों से भी कार्बन प्राप्त करते हैं।

मृतजीवी पौधों में कुछ प्रकार के मॉस, लाइकेन, और पौधे शामिल हैं जो मृत लकड़ी, पत्तियों, या अन्य पदार्थों पर उगते हैं। ये पौधे अपने भोजन के लिए मृत पदार्थों से कार्बन, नाइट्रोजन, और अन्य पोषक तत्व प्राप्त करते हैं।

कुछ उदाहरण मृतजीवी पादपों के निम्नलिखित हैं:

  • कवक: मशरूम, फफूंदी, और अन्य कवक
  • शैवाल: डायटम, सिलिका, और अन्य शैवाल
  • पौधे: मॉस, लाइकेन, और कुछ प्रकार के पौधे

मृतजीवी पादपों के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:

  • ये मृत पदार्थों को विघटित करके पोषक तत्वों को पुनर्चक्रण में मदद करते हैं।
  • ये अन्य जीवों के लिए भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं।
  • ये पारिस्थितिक तंत्र की जैव विविधता में योगदान करते हैं।

अपुष्पी पादप

ऐसे पादप जिनमें पुष्प नहीं पाए जाते है, अपुष्पी पादप कहलाते है। जैसे फर्न, माॅस आदि।

अपुष्पी पादप, जिन्हें क्रिप्टोगैम भी कहा जाता है, पादपों का एक समूह है जो बीज नहीं पैदा करता है। ये पादपों का सबसे प्रारंभिक समूह है और पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी पादपों का लगभग 20% हिस्सा इनमें शामिल है।

अपुष्पी पादपों की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • इनमें पुष्प नहीं होते हैं।
  • इनके बीज अंडाशय में बंद नहीं होते हैं।
  • इनके बीजांड में एक या दो बीजपत्र होते हैं।
  • इनके पत्ते सरल शिराविन्यास वाले होते हैं।

अपुष्पी पादपों को तीन मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है:

  • थैलोफाइटा (Thallophyta): इनमें कोई स्पष्ट तना, पत्तियाँ या जड़ें नहीं होती हैं। इनमें केवल एक ही शरीर होता है, जिसे थैलस कहते हैं। उदाहरण: शैवाल, लाइकेन, मॉस।
  • ब्रायोफाइटा (Bryophyta): इनमें तना, पत्तियाँ और जड़ें होती हैं, लेकिन ये अत्यंत सरल होती हैं। ये भूमि पर पाए जाते हैं, लेकिन इनका संबंध जलीय वातावरण से होता है। उदाहरण: काई, फर्न।
  • टेरिडोफाइटा (Tracheophyta): इनमें तना, पत्तियाँ और जड़ें होती हैं, जो अच्छी तरह से विकसित होती हैं। ये भूमि पर पाए जाते हैं और इनका संबंध जलीय वातावरण से नहीं होता है। उदाहरण: फर्न, सॉरेल, आदि।

अपुष्पी पादपों की कुछ प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है:

पुष्प

अपुष्पी पादपों में पुष्प नहीं होते हैं। पुष्प प्रजनन का महत्वपूर्ण अंग होते हैं। इनके बिना, अपुष्पी पादप बीज पैदा नहीं कर सकते हैं।

बीज

अपुष्पी पादपों के बीज अंडाशय में बंद नहीं होते हैं। निषेचन के बाद, बीजांड जमीन पर गिर जाता है और वहाँ से अंकुरित होता है।

बीजपत्र

बीज में एक या दो बीजपत्र होते हैं। बीजपत्र भ्रूण के भोजन के लिए आवश्यक होते हैं।

शिराविन्यास

अपुष्पी पादपों की पत्तियों में सरल शिराविन्यास होता है। सरल शिराविन्यास में, शिराएँ एक सीधी रेखा में चलती हैं।

आर्थिक महत्त्व

अपुष्पी पादपों का आर्थिक महत्त्व बहुत कम है। इनसे प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थों में शैवाल, फर्न, आदि शामिल हैं। इनसे प्राप्त होने वाले अन्य उत्पादों में कागज, रबर, औषधियाँ, आदि शामिल हैं।

पर्यावरणीय महत्त्व

अपुष्पी पादपों का पर्यावरण में भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। ये प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन छोड़ते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं। ये मिट्टी को नम रखते हैं और मिट्टी के कटाव को रोकते हैं।

पुष्पी पादप

ऐसे पादप जिनमें पुष्प पाए जाते है, पुष्पी पादप कहलाते है। जैसे गुड़हल, गुलाब, गुलमोहर, अमलतास, चमेली आदि।

पुष्पी पादप, जिन्हें संवृतबीजी या आवृतबीजी भी कहा जाता है, पादपों का एक विशाल समूह है जो बीज पैदा करता है। ये पादपों का सबसे विकसित समूह है और पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी पादपों का लगभग 80% हिस्सा इनमें शामिल है।

पुष्पी पादपों की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • इनमें पुष्प होते हैं, जो प्रजनन के अंग होते हैं।
  • इनके बीज अंडाशय में बंद होते हैं।
  • इनके बीजांड में दो बीजपत्र होते हैं।
  • इनके पत्ते जालिकामय शिराविन्यास वाले होते हैं।

पुष्पी पादपों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है:

  • द्विबीजपत्री पुष्पी पादप (Dicotyledonous angiosperms): इनमें बीजपत्र दो होते हैं। उदाहरण: आम, गुलाब, गेहूँ, चावल, आदि।
  • एकबीजपत्री पुष्पी पादप (Monocotyledonous angiosperms): इनमें बीजपत्र एक होता है। उदाहरण: घास, गन्ना, प्याज, लहसुन, आदि।

पुष्पी पादपों की कुछ प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है:

पुष्प

पुष्पी पादपों का सबसे विशिष्ट अंग पुष्प है। पुष्प प्रजनन के अंग होते हैं। पुष्प में चार मुख्य भाग होते हैं:

  • पंखुड़ी (Petal): ये पुष्प का रंगीन भाग होता है।
  • पुंकेसर (Stamen): ये पुष्प का नर भाग होता है।
  • स्त्रीकेसर (Carpel): ये पुष्प का मादा भाग होता है।
  • अंडाशय (Ovary): ये स्त्रीकेसर का निचला भाग होता है। इसमें बीजांड होते हैं।

बीज

पुष्पी पादपों के बीज अंडाशय में बंद होते हैं। निषेचन के बाद, बीजांड से बीज बनता है। बीज में भ्रूण होता है, जो एक नए पौधे का विकास करता है।

बीजपत्र

बीज में दो बीजपत्र होते हैं। बीजपत्र भ्रूण के भोजन के लिए आवश्यक होते हैं।

शिराविन्यास

पुष्पी पादपों की पत्तियों में जालिकामय शिराविन्यास होता है। जालिकामय शिराविन्यास में, शिराएँ एक दूसरे को जाल के समान आकार में जोड़ती हैं।

वल्लरी पादप

ऐसे पादप जिनका तना अत्यन्त कोमल होता है; सीधे खड़े नहीं रह सकते है; जमीन पर ही रेंगकर क्षैतिज दिशा में वृद्धि करते हैं एवं काफी जगह घेरते है, वल्लरी पादप कहलाते है। इनमें आरोही पौधों के समान प्रतान नहीं पाए जाते हैं। खरबूजा, तरबूज, कद्दू, दूब घास, पोदीना आदि वल्लरी पादपों के उदाहरण है।

वल्लरी पादपों को दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • प्रत्यक्ष वल्लरी: इन वल्लरी पादपों के तने में कुंडलित होने की क्षमता होती है, जिससे वे अपने सहारे के चारों ओर लिपट जाते हैं। कुछ प्रत्यक्ष वल्लरी पादपों में शामिल हैं:
    • गुलाब
    • चमेली
    • लता
    • बेल
  • अप्रत्यक्ष वल्लरी: इन वल्लरी पादपों के तने में कुंडलित होने की क्षमता नहीं होती है। वे अपने सहारे के लिए चिपकने वाली संरचनाओं, जैसे कि हुक या कल्मस का उपयोग करते हैं। कुछ अप्रत्यक्ष वल्लरी पादपों में शामिल हैं:
    • सदाबहार
    • शहतूत
    • अंगूर
    • खीरा

आरोही पादप

ऐसे पादप जिनको ऊपर चढ़ने के लिए सहारे की आवश्यकता होती है आरोही पादप कहलाते है। कुछ पादपों में धागेनुमा संरचनाएँ पायी जाती हैं, इन संरचनाओं को प्रतान (Tendril) कहते हैं। प्रतान, पर्णवृन्त, पत्ती या तने का रूपान्तरण है। मनी प्लांट, मटर, ककड़ी, करेला, तुरई आदि आरोही पौधे हैं।

आरोही पादपों को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

  • लताओं (Vines): ये पादप अपने सहारे की सहायता से एकल तने की सहायता से ऊपर चढ़ते हैं।
  • लताओं (Climbers): ये पादप अपने सहारे की सहायता से कई तने की सहायता से ऊपर चढ़ते हैं।

आरोही पादपों में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं:

  • सहारे की आवश्यकता (Need of support): आरोही पादपों को अपने सहारे की सहायता से ऊपर चढ़ने के लिए आवश्यकता होती है।
  • कमजोर तना (Weak stem): आरोही पादपों में कमजोर तना होता है, जो उन्हें ऊपर चढ़ने में मदद करता है।
  • प्रकाश संश्लेषण की क्षमता (Ability of photosynthesis): आरोही पादपों में प्रकाश संश्लेषण की क्षमता होती है, जो उन्हें अपना भोजन स्वयं उत्पन्न करने में सक्षम बनाती है।

आरोही पादपों की कुछ प्रमुख प्रजातियां हैं:

  • अंगूर (Vitis vinifera): यह एक लताओं वाला पादप है जो आमतौर पर पेड़ों पर चढ़ता है।
  • गुलाब (Rosa): यह एक लताओं वाला पादप है जो आमतौर पर बाड़ों पर चढ़ता है।
  • मटर (Pisum sativum): यह एक लता वाला पादप है जो आमतौर पर पेड़ों पर चढ़ता है।

आवृतबीजी व अनावृतबीजी पादपों का तुलनात्मक अध्ययन

विशेषताआवृतबीजीअनावृतबीजी
पुष्पों की उपस्थितिउपस्थितअनुपस्थित
बीजों की स्थितिबीजांडांडाशय मेंबीजांडांडाशय के बाहर
बीजांडांडाशय का ढक्कनउपस्थितअनुपस्थित
परागण की विधिवायु, कीट, जल, आदिवायु, जल, कीट, आदि
बीजों का आकारबड़ाछोटा
बीजों का अंकुरणभूमिगतभूमिगत या उपरिभूमि
उदाहरणआम, पीपल, नीम, आदिपाइन, चीड़, फर, आदि
आवृतबीजी व अनावृतबीजी पादपों का तुलनात्मक अध्ययन

आवृतबीजी पादप

आवृतबीजी पादपों में पुष्प होते हैं। पुष्पों में बीजांडांडाशय होता है, जिसमें बीजांड होते हैं। बीजांडांडाशय एक ढक्कन से ढका होता है। आवृतबीजी पादपों में परागण की विधि वायु, कीट, जल, आदि हो सकती है। आवृतबीजी पादपों के बीज बड़े होते हैं और इनका अंकुरण भूमिगत होता है।

अनावृतबीजी पादप

अनावृतबीजी पादपों में पुष्प नहीं होते हैं। बीजांडांडाशय बीजांडों से घिरा रहता है, लेकिन कोई ढक्कन नहीं होता है। अनावृतबीजी पादपों में परागण की विधि वायु, जल, कीट, आदि हो सकती है। अनावृतबीजी पादपों के बीज छोटे होते हैं और इनका अंकुरण भूमिगत या उपरिभूमि हो सकता है।

आवृतबीजी पादपों में अनावृतबीजी पादपों की तुलना में अधिक विविधता पाई जाती है। आवृतबीजी पादपों में से ही अधिकांश पादप होते हैं, जिनका उपयोग मनुष्य अपने जीवन में करता है। उदाहरण के लिए, खाद्य पदार्थ, औषधियाँ, ईंधन, आदि।

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