ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution)

अनचाही, अवांछनीय ध्वनि को शोर (Noise) कहते हैं। ध्वनि की प्रबलता जब इतनी बढ़ जाती है कि यह हमें प्रकोपित करने लगे तो ऐसे शोर को ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) कहते हैं।

धीमी मर्मर ध्वनि (Whisper) और वायुयान के इंजन द्वारा उत्पन्न शोर में ध्वनि प्रबलता का ही अंतर है। अतः इन दोनों ध्वनियों को अभिव्यक्त करने के लिये ध्वनि ही मापक इकाई होती है। इसे डेसिबल (Decibel) कहते हैं। इस मापक इकाई को वैज्ञानिक ग्रेहम बेल (Graham bell) ने प्रस्तुत किया था। इसे db द्वारा व्यक्त किया जाता हैं। शून्य स्तर की ध्वनि से प्रारम्भ होकर, शान्त स्थलों जैसे पुस्तकालय, रेडियो-ध्वनि, अभिलेखन कक्ष आदि में ध्वनि 30db होती है। घरों में शांत अध्ययन कक्ष में, हल्के वाहनों की आती ध्वनि लगभग 50db होती है। सामान्य वार्तालाप में यह 50db होती है। ट्रकों व बसों के द्वारा उत्पन्न ध्वनि 90db होती है। कारखानों में मशीनों द्वारा उत्पन्न ध्वनि 100db तथा जैट वायुयान के चलने पर 180db की ध्वनि उत्पन्न होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने किसी भी शहर के लिए 45 dB को सुरक्षित शोर स्तर तय किया है। 10 मिली सेकण्ड से अधिक समय के लिए 90 dB से अधिक ध्वनि स्तर, श्रवणिक प्रतिवर्ती क्रिया (Aural reflex action) टिम्पैनिंक झिल्ली का संकुचन करता है। 140 dB से अधिक ध्वनि स्तर कर्ण अस्थिका (Ear oscicles) की गति की दिशा को बदल देता है, जिससे आन्तरिक कर्ण द्वारा प्राप्त ध्वनि की तीव्रता कम हो जाती है। यह सुरक्षात्मक, प्रतिवर्ती क्रिया प्रबल शोर के बुरे प्रभाव का सामना थोड़े समय के लिए ही कर पाती है। इन तथ्यों के आधार पर अस्पताल क्षेत्रों में 65 dB को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहनशीलता की सीमा माना गया है।

80db से अधिक की कोई भी ध्वनि एक प्रदषक है जो हमारी श्रवण क्षमता के लिये हानिकारक है। 100db के शोर में हम विचलन व बैचेनी अनुभव करने लगते हैं और 120db से अधिक का शोर सिर में वेदना उत्पन्न करता है। प्रबल शोर हमारे भौतिक-पर्यावरण को क्षति पहुँचाता है। ध्वनि गति से भी तेज चलने वाले सुपरसोनिक जेट अपने पीछे ध्वनि तरंगों को छोड़ता जाता है। इन्हें ‘ध्वनि बूम’ (Sonic boom) कहते है। ध्वनि बूमों के भूमि सतह से टकराने पर, यह इमारतों को कमजोर करता है।

ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) के मानव स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव

शोर वार्तालाप अवरोधक क्षमता को कम करता है और होता है। यह हमारी श्रवण मानसिक शांति को विक्षोभित करता है। घनी जनसंख्या वाले शहरों व औद्योगिक नगरों के शोर-शराबे में रहने वाले नागरिकों को अपेक्षाकृत कम आयु में ही कम सुनाई देता है। शोर मानसिक तनाव तथा हृदय गति को बढ़ाता है। अत्यधिक शोर यकृत व मस्तिष्क के कार्यों के लिये हानिकारक होता है। अचानक होने वाली प्रबल ध्वनि स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त हानिकारक होती है। इससे श्रवण शक्ति समाप्त हो जाती है या फिर मनुष्य मूर्छित भी हो सकता है।

अधिक प्रबल शोर से नेत्र-पुतलियाँ प्रसारित हो जाती है, त्वचा पीली पड़ जाती है, ऐच्छिक पेशियाँ संकुचित होती हैं, जठर-रसों का स्रवण अवरूद्ध हो जाता है, रुधिर दाब बढ़ जाता है और रूधिर में एड्रिनेलीन हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है तो तंत्रिका-पेशीय तनाव व चिन्ता तथा बेचैनी बढ़ाता है।

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