जैव विविधता (Biodiversity)

जैव विविधता से तात्पर्य, विभिन्न जीव रूपों में पाई जाने वाली विविधता से है। यह किसी क्षेत्र विशेष में पाये जाने वाले विभिन्न जीवरूपों को इंगित करता है। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी पर जीवों की लगभग 1 करोड़ जातियाँ पाई जाती है, जबकि हमें सिर्फ 20 लाख जातियों की ही जानकारी है। पृथ्वी पर कर्क रेखा व मकर रेखा के बीच के क्षेत्र में पौधों व जन्तुओं में काफी विविधता पाई जाती है। अतः यह क्षेत्र बृहद् जैवविविधता क्षेत्र (मेगा बायोडाइवर्सिटी क्षेत्र) कहलाता है।

जैव विविधता के विभिन्न स्तर (Levels of Biological Diversity)

जैव विविधता को मुख्यतः तीन स्तरों में बांटा जाता है, जो निम्नलिखित हैं-

1 . आनुवांशिक विविधता (Genetic Diversity)

एक ही प्रजाति के विभिन्न जीवों में जीनों के क्रम की भिन्नता के कारण जो भिन्नता होती है उसे आनुवांशिक विविधता कहते हैं। आनुवांशिक विविधता किसी प्रजाति के प्रत्येक सदस्य में विशिष्ट लक्षण एवं विशेषताओं का समावेश करता है। इसी कारण समान प्रजाति के अन्दर कुछ प्राणी दूसरों से लम्बे होते हैं, कुछ की आँखें मूरी तो कुछ की नीली होती हैं। आनुवांशिक विविधता के कारण ही एक प्रजाति के जीव की अलग-अलग नस्लें होती हैं। उदाहरण के लिए कुत्ते की अलग-अलग नस्लें आनुवांशिक विविधता का ही परिणाम है। आनुवांशिक विविधता विशिष्ट जीव या सम्पूर्ण प्रजाति को बदलते पर्यावरण से अनुकूलन में सहायता करती है और पर्यावरणीय कारकों में दबाव की स्थिति में सम्पूर्ण प्रजाति के विलुप्त होने के खतरे को कम करती है।

2. प्रजाति विविधता (Species Diversity)

प्रजाति विविधिता का आशय एक विशेष पारिस्थितिक तंत्र में प्रजातियों की संख्या अथवा विविधता से है। अलग-अलग प्रजाति के जीवों में आनुवांशिक अनुक्रम में स्पष्ट रूप से भिन्नता होती है और उनके बीच प्रजनन नहीं होता है। यद्यपि निकट से सम्बन्धित प्रजातियों के आनुवांशिक गुणों में बहुत अधिक समानता होती है। जैसे-मानव और चिम्पांजी के लगभग 98.4 प्रतिशत जीन समान है। एक विशेष पारिस्थितिक तंत्र में प्रजाति विविधता का 0-1 के बीच मापा जाता है। एक आदर्श स्थिति होती है जो उस पारिस्थितिक तंत्र में अनंत विविधता दर्शाती है। वही “1” दर्शाता कि उस विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र में केवल एक प्रजाति निवास करती है।

3. पारिस्थितिक विविधता (Ecosystem Diversity)

पारिस्थितिक विविधता का आशय किसी भौगोलिक क्षेत्र में पारिस्थितिक तंत्रों की विविधता से है। विश्व में विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र हैं, जिनमें वन, घास के मैदान, पर्वत, नदी, झील, समुद्र आदि प्रमुख हैं। प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र की अपनी विशिष्टता होती है। आनुवांशिक विविधता तथा प्रजातीय विविधता की अपेक्षा पारिस्थितिकीय विविधता की माप कठिन होती है, क्योंकि सामान्यतया पारितंत्रीय सीमाएं व्यवस्थित रूप से निर्धारित नहीं हाती है। सभी पारिस्थितिकीय विविधताओं में प्रवाल पारिस्थितिकीय तंत्र में सर्वाधिक जैव विविधता पाई जाती है।

जैव विविधता का संरक्षण (Conservation of biodiversity)

जैव विविधता का संरक्षण करने के लिए कई तरीके हैं, जैसे कि इन-सीटू संरक्षण, एक्स-सीटू संरक्षण, जैव विविधता समझौते, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियां, जन सहभागिता, जागरूकता, शोध और विकास, आदि।

जैव विविधता के संरक्षण हेतु निम्नलिखित तीन स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं-

  1. आनुवंशिक विविधता का संरक्षण आनुवंशिक विविधता के संरक्षण से उस जाति का संरक्षण सम्भव होता है।
  2. जाति विविधिता का संरक्षण
  3. पारिस्थितिक तन्त्र की विविधता का संरक्षण

जैव विविधता का संरक्षण निम्नलिखित दो विधियों के द्वारा किया जा सकता है-

इन-सिटू संरक्षण एवं एक्स-सिटू संरक्षण, दोनों प्रकार के संरक्षण एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

स्वस्थाने संरक्षण (In-situ Conservation)

इस प्रकार के संरक्षण के अन्तर्गत पादपों व जंतुओं को उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित किया जाता है। इस कारण उनका विकास उत्तम तरीके से होता है। इन क्षेत्रों को सरकार द्वारा सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।

इसका मतलब है कि जीवों को उनके प्राकृतिक वातावरण में ही संरक्षित किया जाता है, जैसे कि राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, बायोस्फीर आरक्षण क्षेत्र आदि। इससे जीवों को उनके आनुकूलन, आहार श्रृंखला और प्रजनन के लिए उपयुक्त परिस्थिति मिलती है।

जैव विविधता के संरक्षण हेतु भारत सरकार ने सन् 1952 में इण्डियन बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ की स्थापना की है जो कि वन्य जीवन एवं जैव विविधता के संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय अपनाती है-

  • राष्ट्रीय उद्यानों की सहायता से
  • अभ्यारण्यों की सहायता से
  • प्राणी उद्यानों की सहायता से

उत्स्थाने संरक्षण (Ex-situ Conservation)

इस विधि में जन्तुओं एवं पादपों को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर संरक्षित किया जाता है। पादपों या जन्तुओं को ऐसे आवासों (Habitats) में जहां से वे विलुप्त हो चुके हों, पुनःस्थापित करना भी संरक्षण की इसी श्रेणी में आता है। इससे जीवों को लुप्त होने के खतरे से बचाया जा सकता है, और उनके आनुवंशिक सामग्री को संग्रहित किया जा सकता है।

इस विधि में संरक्षण हेतु निम्नलिखित तरीके काम में लाये जाते हैं-

  1. वनस्पति उद्यान (Botanical Gardens)
  2. जन्तु उद्यान (Zoological Parks)
  3. एक्वेरिया (Aquaria)
  4. जीन बैंक (Gene Banks)
  5. डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी (DNA Technology)
  6. उत्तक संवर्धन (Tissue Cultrue)

इसके अन्तर्गत पौधों का संरक्षण निम्निलिखित प्रकार के माध्यम से पेड़-पौधों को उनके आवास से दूर स्थापित विभिन्न स्थानों एवं प्रयोगशालाओं में किया जाता है-

  • वानस्पतिक उद्यानों में
  • वानिकी अनुसंधान संस्थाओं में
  • कृषि अनुसंधान केन्द्रों तथा अन्य संरक्षण साधनों के द्वारा

एक्स-सिटू संरक्षण में पौधों के संरक्षण हेतु निम्नलिखित तीन तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

  • बीज बैंक
  • जीन बैंक
  • इन विट्रो स्टोरेज विधि
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