जीवमंडल स्थल, जल तथा हवा के बीच का एक सीमित भाग है। यह वह भाग है जहाँ जीवन मौजूद है। यहाँ जीवों की बहुत सी प्रजातियाँ हैं, जो कि सूक्ष्म जीवों तथा बैक्टीरिया से लेकर बड़े स्तनधारियों के आकार में पाई जाती हैं। मनुष्य सहित सभी प्राणी, जीवित रहने के लिए एक-दूसरे से तथा जीवमंडल से जुड़े हुए हैं।
जीवमंडल के प्राणियों को मुख्यतः दो भागों-जंतु जगत एवं पादप-जगत में विभक्त किया जा सकता है। पृथ्वी के ये तीनों परिमंडल आपस में पारस्परिक क्रिया करते हैं तथा एक दूसरे को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, लकड़ी तथा खेती के लिए वनों को काटा जाए तो इससे ढलुआ भाग पर मिट्टी का कटाव तेज़ी से होने लगता है। इसी प्रकार, प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूकंप से पृथ्वी की सतह में परिवर्तन हो जाता है। हाल ही में, सुनामी के कारण अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूहों का कुछ भाग पानी में डूब गया। झीलों तथा नदियों में दूषित पदार्थों के प्रवाहित होने से उनका जल मानव के इस्तेमाल के लायक नहीं रह जाता है। यह जल दूसरे जीवों को भी नुकसान पहुँचाता है।
उद्योगों, तापीय विद्युत संयंत्रों तथा गाड़ियों का उत्सर्जी पदार्थ वायु को प्रदूषित करता है। कार्बन डाइऑक्साइड वायु का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। लेकिन कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है। इसे भूमंडलीय तापन कहा जाता है। इसलिए भूमंडल, वायुमंडल तथा जलमंडल के बीच के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए पृथ्वी के संसाधनों के सीमित उपयोग की आवश्यकता है।