अम्ल वर्षा (Acid rain)

अम्ल वर्षा (acid rain) का वास्तविक अर्थ उस वर्षा, हिम, ओला और कुहरा से है जिसमें कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) के अतिरिक्त सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO) घुले हों, जिनसे तनु सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) तथा नाइट्रिक अम्ल (HNO3) बनते हैं। किन्तु व्यापक दृष्टि से पौधों तथा इमारतों द्वारा SO2 तथा NO का absorption भी इसमें सम्मिलित कर लिया जाता है।

सामान्य तौर पर होने वाली बारिश का पीएच लेवल (pH level, किसी द्रव्य की अम्लता दर्शाने वाला मान) 5.3 से 6.0 तक होता है लेकिन जब सामान्य मात्रा से अधिक नाइट्रिक (Nitric) और सल्फ्यूरिक एसिड (Sulfuric Acid) का वातावरण में निष्पादन होता है तो यह अम्लीय वर्षा का कारण बनता है। शहर में मौजूद तमाम तरह की फैक्ट्री, कारखानों में ईधनों और गाड़ियों से निकलने वाले धुएं ही मुख्य रूप से अम्ल वर्षा का कारण बनते हैं। वहीं ज्वालामुखी के फटते समय निकलने वाले कुछ रसायन ऐसे होते हैं जो अम्ल वर्षा का कारण बन सकते हैं।

अम्ल वर्षा के प्रकार

गीला निक्षेप

यदि हवा द्वारा वायु में मौजूद अम्लीय केमिकल (Chemicals) को ऐसे स्थान में प्रवाहित कर दिया जाता है, जहाँ का मौसम गीला हो, तब वहाँ के मौसम में मिश्रित होकर यह केमिकल धुंध, वर्षा, बर्फ, कोहरा आदि के रूप में धरती पर गिरते हैं। जैसे-जैसे अम्लीय पानी बहता है तो यह बड़ी मात्रा में पौधों और जीवों को प्रभावित करता है। यह नालियों से नदियों और नदियों से नहरों में जाता है, जहाँ से यह समुद्र के पानी में जा मिलता है, जिससे समुद्री आवास भी प्रभावित होते हैं।

शुष्क निक्षेप

यदि हवा द्वारा वायु में मौजूद अम्लीय केमिकल को ऐसे स्थान में प्रवाहित कर दिया जाता है, जहां का मौसम शुष्क हो, तो वहाँ ये अम्लीय केमिकल धूल या धुएं में मिश्रित हो जाते हैं और शुष्ककणों के रूप में ज़मीन पर गिर जाते हैं। ये ज़मीन और अन्य सतहों जैसे गाड़ियों, घरों, पेड़ों और इमारतों पर चिपक जाते हैं।वर्तमान में, बड़ी मात्रा में अम्लीय निक्षेप को दक्षिणपूर्वी कनाडा, उत्तरपूर्वी अमेरिका और यूरोप के अधिकांश हिस्सों में देखा गया है, जिनमें स्वीडन, नॉर्वे और जर्मनी के हिस्से भी शामिल हैं। इसके अलावा अम्ल की कुछ मात्रा दक्षिण एशिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में भी पाई गयी है। वायु में अम्ल का बढ़ाव औद्योगिक क्रांति के दौरान 1800 के दशक में पाया गया था। अम्ल वर्षा और वायुमंडलीय प्रदूषण के बीच संबंध को स्कॉटिश रसायनज्ञ, रॉबर्ट एंगस स्मिथ द्वारा पहली बार 1852 में मैनचेस्टर, इंग्लैंड में पता लगाया गया था। लेकिन इसने 1960 के दशक में सार्वजनिक रूप से अपनी ओर ध्यान आकर्षित किया था

अम्लीय वर्षा का विश्व पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

जलीय पर्यावरण पर प्रभाव

अम्लीय वर्षा या तो सीधे जलीय निकायों पर गिरती है या जंगलों, सड़कों और खेतों से होते हुए नदियों, नहरों और झीलों में प्रवाहित हो जाती है। यह अम्ल पानी के पीएच को कम कर देता है, जिससे पानी में रहने वाले जीवों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। जलीय पौधों और जानवरों को जीवित रहने के लिए लगभग 4.8 के विशेष पीएच स्तर की आवश्यकता होती है। इससे नीचे यदि पीएच स्तर गिरता है तो यह जलीय जीवन के लिए घातक हो जाता है। 5 से नीचे पीएच स्तर पर, अधिकांश मछली के अंडे फूट नहीं पाते हैं और कम पीएच में वयस्क मछलियों की भी मृत्यु हो सकती है।वनों पर प्रभावः यह पेड़ों को बीमारी, खराब मौसम और कीटों से लड़ने के लिए कमज़ोर बनाता है और उनकी वृद्धि पर भी गहरा प्रभाव डालता है। पूर्वी यूरोप में विशेष रूप से जर्मनी, पोलैंड और स्विट्जरलैंड में अम्ल वर्षा से हुई वहां के वनों की क्षति सबसे अधिक स्पष्ट है।

मिट्टी पर प्रभाव

अम्लीय वर्षा मिट्टी के रसायन और जैविकी पर अत्यधिक प्रभाव डालती है। अम्ल वर्षा के प्रभाव के कारण मिट्टी के रोगाणुओं और जैविकी गतिविधि के साथ-साथ उसकी रासायनिक रचनाएं जैसे मिट्टी का पीएच क्षतिग्रस्त हो जाता है।

बास्तुकला और इमारतों पर प्रभाव

अम्ल वर्षा चूना पत्थर से निर्मित इमारतों पर खनिजों के साथ प्रतिक्रिया करके चूने को निकाल देती हैं। इससे इमारतें कमज़ोर और काफी प्रभावित हो जाती हैं।

सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

जब वातावरण में, सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड गैसों के कण सड़कों आदि पर दृश्यता को घटा देते हैं तो यह दुर्घटनाओं का कारण बन सकते हैं, जिससे क्षति और मृत्यु भी हो सकती हैं। अम्ल वर्षा से मानव स्वास्थ्य सीधे प्रभावित नहीं होता है क्योंकि अम्ल वर्षा का पानी काफी हल्का होता है। लेकिन शुष्क रूप से मौजूद अम्ल निक्षेप गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है। यह फेफड़ों और दिल की समस्याओं जैसे ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) और दमे का कारण बन सकता है।

Scroll to Top